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माँ-बाप का घर बिका तो बेटी का घर बसा, कितनी नामुराद है ये रस्म दहेज़ भी !!
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बहुत सा पानी छुपाया है मैंने अपनी पलकों में,
जिंदगी लम्बी बहुत है, क्या पता कब प्यास लग जाए।
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न जाने कब खर्च हो गये, पता ही न चला,
वो लम्हे, जो छुपाकर रखे थे जीने के लिये।
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छोड़ दिया किस्मत की लकीरों पर यकीन करना,

जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज़ है!
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Peene de sharab masjid me baith ke Galib
Ya woh jaga bata jaha KHUDA nahi hai
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निगाहों मैं अभी तक दूसरा चेहरा नहीं आया..
भरोसा ही कुछ ऐसा तुम्हारे लौट आने का..
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हमारा कत्ल करने की उनकी साजीश तो देखो,
गुजरे जब करीब से तो चेहरे से पर्दा हटा लिया।
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मुझको गिरते हुए पत्तों ने यह समझाया है..
बोझ बन जाओगे तो अपने भी गिरा देते हैं..
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मेरी लिखी किताब, मेरे ही हाथो मे देकर वो कहने
लगे
इसे पढा करो, मोहब्बत.... करना सिख जाओगे..!!
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भूल सकते हो तो भूल जाओ इजाज़त है तुम्हे,
न भूल पाओ तो लौट आना एक और भूल कि इजाज़त है तुम्हे..
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भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है,
हर मोहब्बत करने वाला इसलिए बरबाद रहता है..
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तेरा ख्याल दिल से मिटाया नहीं अभी,
बेवफा मैंने तुझको भुलाया नहीं अभी..
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