कभी कभी सोचता हुँ.. आखिर हर्ज ही क्या था,,,जो उसे एक बार मना लेता...??
कभी कभी सोचता हुँ..
आखिर हर्ज ही क्या था,,,जो उसे एक बार
मना लेता...??
यहाँ सब समझते है के मैं इश्क़ का मारा हूँ, हाँ अन्जान हैं के उन्होंने अभी मेरी मेहबूब नहीं देखा..
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तुम आओगे भी अब लौटकर तो तुम्हे क्या हासिल होगा, जो मोहब्बत थी हमारे बीच वो फासलो में फ़ना हो गई..
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..राज तो हमारा हर जगह पे है..। पसंद करने वालों के “दिल” में और ना पसंद करने वालों के “दिमाग” में..
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