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कभी जो मिले फुरसत ..
तो बताना ज़रूर .. ऐ जालिम .. !

वो कौन सी मुहब्बत थी .. जो हम तुम्हे दे ना सके .. ?
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आग सूरज में होती है जलना ज़मीन को परता हैं
मोब्बत निगाहैं करती हैं तरपना दिल को परता हैं
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जिन जख्मो से खून नहीं निकलता समझ लेना
वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है।
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फिर कोई ज़ख़्म मिलेगा, तैयार रह ऐ दिल,
कुछ लोग फिर पेश आ रहे हैं, बहुत प्यार से।
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देखा जो इश्क़ आँखों में तो कहने लगा हक़ीम
अफ़सोस तुम इलाज के क़ाबिल नहीं रहे..
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हवस ने पक्के मकान, बना लिये हैं जिस्मों में..

और सच्ची मुहब्बत किराये की झोपड़ी में, बीमार पड़ी है आज भी
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हिम्मत इतनी थी, समुन्दर भी पार कर सकते थे,

मजबूर इतने हुए कि दो बूँद आँसुओं ने डुबो दिया..
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मेरी मोहब्बत ही देखनी है तो गले लगाकर देखो..!
अगर धडकन ना रूक गयी तो मोहब्बत ठुकरा देना..!!
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अब हिचकियाँ आती हैं तो पानी पी लेते हैं,
ये वहम छोड़ दिया है कि कोई याद करता है..
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अजीब किस्सा है जिन्दगी का, अजनबी हाल पूछ रहे हैं और अपनो को खबर तक नहीं...
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गुफ्तगू उनसे होती यह किस्मत कहाँ..

ये भी उनका करम है कि वो नज़र तो आये।

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रो दूँ अगर तुम्हारे सामने तो समझ जाना तुम,
कि मेरी बर्दास्त करने की वो आखरी हद थी. ..
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