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उल्फ़त के मारों से ना पूछो आलम इंतज़ार का, पतझड़ सी है ज़िन्दगी और ख्याल है बहार का ।
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दिन भर भटकते रहते हैं अरमान तुझसे मिलने के, न ये दिल ठहरता है न तेरा इंतज़ार रुकता है।
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किन लफ्जों में लिखूँ मैं अपने इंतज़ार को तुम्हें, बेजुबां है इश्क़ मेरा ढूंढ़ता है खामोशी से तुझे
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मुझको अब तुझ से मोहब्बत नहीं रही, ऐ ज़िन्दगी तेरी भी मुझे ज़रूरत नहीं रही, बुझ गये अब उसके इंतज़ार क
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