फ़ुरसत ए ऐब हो तो क़दम रखूं तेरे मयखाने में अभी मसरूफ़ हूं अय साकी मैं तुझे भुलाने में
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मय-कश हूँ वो कि पूछता हूँ उठ के हश्र में, क्यूँ जी शराब की हैं दुकानें यहाँ कहीं ॥
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उनके चहरे का नक़ाब बेनक़ाब हो गया । तभी तो हमारे पीने का हिसाब बेहिसाब हो गया ||
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अज़ाब ए इश्क़ के मुकाबले मेरे साथ ना लगा इश्क़ घुला है इस जाम में इसे हाथ ना लगा
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जाम चलने लगे दिल मचलने लगे, चेहरे चेहरे पे रंगे-शराब आ गया । बात कुछ भी न थी बात इतनी हुईं, आज महफ़ि
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बैठा तो बड़े शोंक से हूं मैं हाथ में जाम ले कर फंस न जाऊं कहीं महफ़िल में उनका नाम ले कर
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